Son-in-law beats mother-in-law in City Beautiful Chandigarh

सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ में दामाद करते हैं सास-ससुर की धुनाई

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Son-in-law beats mother-in-law in City Beautiful Chandigarh

हेल्पऐज इंडिया का बुजुर्गों पर हुए सर्वे में दावा

अर्थ प्रकाश/साजन शर्मा

चंडीगढ़। बुजुर्गों की देखभाल व सेवा को समर्पित हेल्पएज इंडिया ने चंडीगढ़ सहित देश के 22 शहरों में एक सर्वे किया है। इसमें बुजुर्गों की दशा को लेकर स्थितियों का आंकलन किया गया। पढ़े लिखे शहर चंडीगढ़ में भी बुजुर्गों से मारपीट के काफी केस सामने आते हैं। हालांकि दूसरे शहरों की बनीस्बत यह काफी कम है। हैरतंगेज बात यह है कि ज्यादातर मामलों में बुजुर्गों की पिटाई दामाद करते हैं। दूसरे नंबर पर बेटा व पत्नी बुजुर्गों से मारपीट करते हैं। इतना ही नहीं पोते-पोतियों व दोहते-दोहतियों के भी मारपीट करने का सर्वे में खुलासा हुआ है। 40 प्रतिशत मामलों में दामाद, 20 प्रतिशत मामलों में बेटा व पत्नी जबकि 20 प्रतिशत ही मामलों में ग्रैंड चिल्ड्रन मारपीट करते हैं। इसमें पैसे से संबंधित लेनदेन को लेकर मारपीट, नेगलेक्ट करना व डिसरिसपेक्ट  शामिल है। सर्वे में एक और चौकाने वाला खुलासा हुआ है कि शहर के 69 प्रतिशत बुजुर्ग स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं। हेल्पऐज इंडिया के पंजाब-हरियाणा, जम्मू-कश्मीर व चंडीगढ़ के स्टेट हैड भवनेशवर शर्मा के मुताबिक बुजुर्गों की दशा को लेकर स्थितियों का आंकलन किया गया। बड़े ही हैरतंगेज नतीजे सामने आए। बुजुर्ग जिस सममान के हकदार हैं वह उन्हें नहीं मिल रहा।    
 

59 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि बुजुर्गों को समाज में प्रताडि़त किया जाता है। इनका मानना है कि 57 प्रतिशत बुजुर्गों का कोई सम्मान नहीं है। 37 प्रतिशत को बिलकुल ही नेगलेक्ट किया जाता है। 30 प्रतिशत मानते हैं कि उनके साथ मारपीट व गाली गलौच किया जाता है। 10 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि उनके रिश्तेदारों, बेटों व बहुओं ने उनके साथ गाली गलौच व मारपीट की।     सर्वे में पाया गया कि ऐसा करने वालों में 35 प्रतिशत बेटे, 21 प्रतिशत बहुएं व 36 प्रतिशत अन्य रिश्तेदार जिम्मेदार हैं। 57 प्रतिशत का घर में कोई सममान नहीं। 38 प्रतिशत के साथ गाली गलौज होता है। 33 प्रतिशत नेगलेक्ट किये जाते हैं। 24 प्रतिशत के साथ पैसों को लेकर दुव्र्यवहार होता है। 13 प्रतिशत बुजुर्गों के साथ मारपीट व थप्पड़ इत्यादि मारने की घटनाएं होती हैं। 
 

47 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि उन्होंने गाली गलौज के बाद परिजनों से बातचीत करनी बंद कर दी। 46 प्रतिशत बुजुर्ग जानते ही नहीं कि अगर परिजन गाली गलौज करें तो ऐसे में क्या करना है। 79 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि उनके परिजन उनके साथ समुचित समय नहीं बिताते। 20 प्रतिशत का मानना है कि परिजन उनके साथ समय बिताने को तैयार नहीं। 58 प्रतिशत बुजुर्गों का मानना है कि फैमिली मेंबरों की काउंसलिंग की जरूरत है। 56 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि गाली गलौज के मामले में निश्चित समय पर फैसले लिये जाने जरूरी हैं। इसके लिए प्रशासन या सरकार को ऐज फ्रेंडली रिस्पॉंस सिस्टम लागू करना चाहिए। 
 

2 प्रतिशत बुजुर्ग हालांकि परिवार के साथ ही रहते हैं लेकिन 59 प्रतिशत का मानना है कि परिजनों को उनके साथ और समय बिताना चाहिए। यानि परिजनों के साथ रहने के बाद भी बुजुर्ग अकेला फील करते हैं। 78 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि उन्हें परिवार के निर्णयों में भागीदार बनाया जाता है। 43.1 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि उन्हें युवा जेनरेशन पूरी तरह से नेगलेक्ट करती है।

नई चीजें सीखने के इच्छुक हैं बुजुर्ग

40 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि समाज का हिस्सा रहने के लिए उन्हें नई चीजें सीखनी चाहिए। 31 प्रतिशत ऐच्छिक तौर पर काम करने को तैयार हैं। 71 प्रतिशत बुजुर्गों की स्मार्ट फोन तक पहुंच नहीं है। 49 प्रतिशत बुजुर्ग केवल कॉल करने के लिए ही फोन इस्तेमाल करते हैं। 30 प्रतिशत सोशल मीडिया जबकि 17 प्रतिशत बैंकिंग ट्रांजेक्शन के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। 48 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि उन्हें स्मार्ट फोन चलाना आता है जबकि 34 प्रतिशत का कहना है कि उन्हें स्मार्ट फोन चलाया जाना सिखाया जाना चाहिए।

40 प्रतिशत बुजुर्ग खुद को फाइनेंशियली सिक्योर नहीं मानते

इसमें पाया गया कि 47 प्रतिशत बुजुर्ग आय स्रोतों के लिए परिवार पर निर्भर हैं। 34.4 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी पेंशन व अन्य कैश स्रोतों पर निर्भर हैं। 60 प्रतिशत बुजुर्ग फाइनेंशियली बिलकुल सिक्योर हैं। 76 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि उनके बच्चे उन्हें पूरा सुपोर्ट करते हैं। 36 प्रतिशत बुजुर्गों की आय का स्रोत उनकी पेंशन है। 40 प्रतिशत बुजुर्ग खुद को फाइनेंशियली सिक्योर नहीं मानते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी इनकम खर्चों के अनुरूप नहीं है। 71 प्रतिशत बुजुर्ग बिना काम किये ही अपनी जिंदगी के अंतिम चरण गुजार रहे हैं। 36 प्रतिशत बुजुर्ग काम करने को तैयार हैं जबकि 40 प्रतिशत का मानना है कि जब तक वह काम कर सकें किया जाना चाहिए।

वर्क फ्रॉम होम के जरिये बुजुर्ग कर  सकते हैं काम

बुजुर्गों की देखभाल करने वाले 54 प्रतिशत मानते हैं कि इनकी री-स्कीलिंग की जानी चाहिए। 49 प्रतिशत काम पाने में उनकी मदद करने को तैयार हैं। 45 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि वर्क फ्रॉम होम के जरिये वह घर से काम कर सकते हैं व रोजगार पा सकते हैं। 44 प्रतिशत बुजुर्ग मानते हैं कि उनका परिवेश इंप्लायमेंट फ्रेंडली नहीं है। 52 प्रतिशत का कहना है कि रोजगार के अवसर बुजुर्गों के लिए नहीं हैं। 

52 प्रतिशत बुजुर्गों का मानना, परिजन करते प्यार व देखभाल

52 प्रतिशत बुजुर्गों को लगता है कि उनके परिजन उन्हें प्यार व उनकी देखभाल करते हैं। 78 प्रतिशत का कहना है कि उनके परिजन उन्हें अच्छे से खाना देते हैं। 43 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि उनके परिजन उन्हें एक्टिव लाइफस्टाइल जीने के लिए प्रेरित करते हैं। 41 प्रतिशत का कहना है कि उनके परिजन उनके मेडिकल व दवा इत्यादि के खर्चे उठाने को तैयार हैं।

घर के आसपास हेल्थकेयर सुविधाएं चाहते हैं बुजुर्ग

87 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि उनके घर के आसपास हेल्थकेयर सुविधाएं उपलब्ध हैं। 78 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि उनके पास ऐप बेस्ड या ऑनलाइन हेल्थ सुविधा नहीं है। 67 प्रतिशत बुजुर्गों के पास कोई हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है। 13 प्रतिशत गवर्नमेंट इंश्योरेंस स्कीम से कवर हैं। 49 प्रतिशत बुजुर्गों की राय में बेहतर हेल्थ इंश्योरेंस होनी चाहिए। 49 प्रतिशत चाहते हैं कि बेहतर हेल्थ सुविधाएं होनी चाहिएं जबकि 42 प्रतिशत चाहते हैं कि मेडिकल के मामले में घर से सुपोर्ट होनी चाहिए।

चंडीगढ़ सहित 22 शहरों में  किया गया सर्वे

सर्वे आंध्रप्रदेश के अमरावती, पंजाब-हरियाणा के चंडीगढ़, असम के दिसपुर, तेलंगाना के हैदराबाद, गुजरात के गांधीनगर, गोवा के पाणाजी, केरल के थिरुवंतपुरम, बिहार के पटना, महाराष्ट्र के मुंबई, झारखंड के रांची, उत्तराखंड के देहरादून, तमिलनाडु के चेन्नई, वेस्ट बंगाल के कोलकात्ता, छतीसगढ़ के रायपुर, कर्नाटक के बैंगलुरु, राजस्थान के जयपुर, उत्तरप्रदेश के लखनऊ, हिमाचल प्रदेश के शिमला, मध्यप्रदेश के भोपाल, ओडिसा के भुवनेश्वर व लद्धाख के लेह व दिल्ली यानि 22 शहरों में 4,399 बुजुर्गों पर किया गया। इसमें 2200 यंग एडल्ट केयरगिवर्स भी शामिल थे।